18-02-93  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

ब्राह्मण जीवन का श्वांस-सदा उमंग और उत्साह

सर्व बच्चों को शिव जयन्ती की मुबारक देते हुए अव्यक्त बापदादा बोले -

आज त्रिमूर्ति शिव बाप सर्व बच्चों को विशेष त्रि-सम्बन्ध से देख रहे हैं। सबसे पहला प्यारा सम्बन्ध है-सर्व प्राप्तियों के मालिक वारिस हो, वारिस के साथ ईश्वरीय विद्यार्थी हो, साथ-साथ हर कदम में फॉलो करने वाले सतगुरू के प्यारे हो। त्रिमूर्ति शिव बाप बच्चों के भी यह तीन सम्बन्ध विशेष रूप में देख रहे हैं। वैसे तो सर्व सम्बन्ध निभाने की अनुभवी आत्मायें हो लेकिन आज विशेष तीन सम्बन्ध देख रहे हैं। यह तीन सम्बन्ध सभी को प्यारे हैं। आज विशेष त्रिमूर्ति शिव जयन्ती मनाने के उमंग से सभी भाग-भागकर पहुँच गये हैं। बाप को मुबारक देने आये हो वा बाप से मुबारक लेने आये हो? दोनों काम करने आये हो। जब नाम ही है शिव जयन्ती वा शिवरात्रि, तो त्रिमूर्ति क्या सिद्ध करता है? प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा क्या करते हैं? आप ब्राह्मणों की रचना रचते हैं ना। उन्हों की फिर पालना होती है। तो त्रिमूर्ति शब्द सिद्ध करता है कि बाप के साथ-साथ आप ब्राह्मण बच्चे भी साथ हैं। अकेला बाप क्या करेगा! इसलिए बाप की जयन्ती सो आप ब्राह्मण बच्चों की भी जयन्ती। तो बाप बच्चों को इस अलौकिक दिव्य जन्म की वा इस डायमन्ड जयन्ती की पद्मापद्म गुणा मुबारक दे रहे हैं। आप सबके मुबारक के पत्र, कार्ड बाप के पास पहुँच ही गये और अभी भी कई बच्चे दिल से मुबारक के गीत गा रहे हैं-चाहे दूर हैं, चाहे सम्मुख हैं। दूर वालों के भी मुबारक के गीत कानों में सुनाई दे रहे हैं। रिटर्न में बापदादा भी देश-विदेश के सर्व बच्चों को पद्म-पद्म बधाइयां दे रहे हैं।

यह तो सभी बच्चे जानते ही हो कि ब्राह्मण जीवन में कोई भी उत्सव मनाना अर्थात् सदा उमंग-उत्साह भरी जीवन बनाना। ब्राह्मणों की अलौकिक डिक्शनरी में मनाने का अर्थ है बनना। तो सिर्फ आज उत्सव मनायेंगे वा सदा उत्साह भरी जीवन बनायेंगे? जैसे इस स्थूल शरीर में श्वाँस है तो जीवन है। अगर श्वाँस खत्म हो गया तो जीवन क्या होगी? खत्म। ऐसे ब्राह्मण जीवन का श्वांस है-सदा उमंग और उत्साह। ब्राह्मण जीवन में हर सेकेण्ड उमंग-उत्साह नहीं तो ब्राह्मण जीवन नहीं। श्वाँस की गति भी नार्मल (सामान्य) होनी चाहिए। अगर श्वाँस की गति बहुत तेज हो जाए-तो भी जीवन यथार्थ नहीं और स्लो हो जाए-तो भी यथार्थ जीवन नहीं कही जायेगी। हाई प्रेशर या लो प्रेशर हो जाता है ना। तो इसको नार्मल जीवन नहीं कहा जाता। तो यहाँ भी चेक करो कि-’’मुझ ब्राह्मण जीवन के उमंग-उत्साह की गति नार्मल है? या कभी बहुत फास्ट, कभी बहुत स्लो हो जाती? एकरस रहती है?’’ एकरस होना चाहिए ना। कभी बहुत, कभी कम-यह तो अच्छा नहीं है ना। इसलिए संगमयुग की हर घड़ी उत्सव है। यह तो विशेष मनोरंजन के लिए मनाते हैं। क्योंकि ब्राह्मण जीवन में और कहाँ जाकर मनोरंजन मनायेंगे! यहाँ ही तो मनायेंगे ना! कहाँ विशेष सागर के किनारे पर या बगीचे में या क्लब में तो नहीं जायेंगे ना। यहाँ ही सागर का किनारा भी है, बगीचा भी है तो क्लब भी है। यह ब्राह्मण क्लब अच्छी है ना! तो ब्राह्मण जीवन का श्वांस है-उमंग-उत्साह। श्वांस की गति ठीक है ना। कि कभी नीचे-ऊपर हो जाती है? बापदादा हर एक बच्चे को चेक करते रहते हैं। ये कान में लगाकर चेक नहीं करना पड़ता। आजकल तो साइन्स ने भी सब आटोमेटिक निकाले हैं।

तो शिव जयन्ती वा शिवरात्रि दोनों के रहस्य को अच्छी तरह से जान गये हो ना! दोनों ही रहस्य स्वयं भी जान गये हो और दूसरों को भी स्पष्ट सुना सकते हैं। क्योंकि बाप की जयन्ती के साथ आपकी भी है। अपने बर्थ-डे (जन्म-दिन) का रहस्य तो सुना सकते हो ना! यादगार तो भक्त लोग भी बड़ी भावना से मनाते हैं। लेकिन अन्तर यह है कि वह शिवरात्रि पर हर साल व्रत रखते हैं और आप तो पिकनिक करते हो। क्योंकि आप सब ने जन्मते ही सदाकाल के लिए अर्थात् सम्पूर्ण ब्राह्मण जीवन के लिए एक बार व्रत धारण कर लिया, इसलिए बार-बार नहीं करना पड़ता। उन्हों को हर साल व्रत रखना पड़ता है। आप सभी ब्राह्मण आत्माओं ने जन्म लेते ही यह व्रत ले लिया कि हम सदा बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण रहेंगे। यह पक्का व्रत लिया है या थोड़ा कच्चा........? जब आत्मा और परमआत्मा का सम्बन्ध अविनाशी है तो व्रत भी अविनाशी है ना। दुनिया वाले सिर्फ खान-पान का व्रत रखते हैं। इससे भी क्या सिद्ध होता है? आपने ब्राह्मण जीवन में सदा के लिए खान-पान का भी व्रत लिया है ना। कि यह फ्री है-खाना-पीना जो भी चाहे खा लो? पक्का व्रत है वा ‘‘कभी-कभी थक जाओ तो व्रत तोड़ दो? कभी टाइम नहीं मिलता तो क्या बनायें, कुछ भी मंगाकर खा लेवें?’’ थोड़ा-थोड़ा ढीला करते हो? देखो, आपके भक्त व्रत रख रहे हैं। चाहे साल में एक बार भी रखते हैं लेकिन मर्यादा को पालन तो कर रहे हैं ना। तो जब आपके भक्त व्रत में पक्के हैं, तो आप कितने पक्के हो? पक्के हो? कभी-कभी थोड़ा ढीला कर देते हो-चलो, कल भोग लगा देंगे, आज नहीं लगाते। यह भी आप ब्राह्मण आत्माओं की जीवन के बेहद के व्रत के यादगार बने हुए हैं।

विशेष इस दिन पवित्रता का भी व्रत रखते हैं। एक-पवित्रता का व्रत रखते; दूसरा-खान-पान का व्रत रखते; तीसरा-सारा दिन किसी को भी किसी प्रकार का दु:ख या धोखा नहीं देंगे-यह भी व्रत रखते हैं। लेकिन आप का इस ब्राह्मण जीवन का व्रत बेहद का है, उन्हों का एक दिन का है। पवित्रता का व्रत तो ब्राह्मण जन्म से ही धारण कर लिया है ना! सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं लेकिन पांचों ही विकारों पर विजय हो-इसको कहते हैं पवित्रता का व्रत। तो सोचो कि पवित्रता के व्रत में कहाँ तक सफल हुए हैं? जैसे ब्रह्मचर्य अर्थात् काम महाशत्रु को जीतने के लिये विशेष अटेन्शन में रहते हो, ऐसे ही और भी चार साथी जो काम महाशत्रु के हैं, उनका भी इतना ही अटेन्शन रहता है? कि उसके लिए छुट्टी है-थोड़ा-थोड़ा क्रोध भल कर लो? छुट्टी है नहीं, लेकिन अपने आपको छुट्टी दे देते हो। देखा गया है कि क्रोध के बाल-बच्चे जो हैं उनको छुट्टी दे दी है। क्रोध महाभूत को तो भगाया है लेकिन उसके जो बाल-बच्चे हैं उनसे थोड़ी प्रीत अभी भी रखी है। जैसे छोटे बच्चे अच्छे लगते हैं ना। तो यह क्रोध के छोटे बच्चे कभी-कभी प्यारे लगते हैं! व्रत अर्थात् सम्पूर्ण पवित्रता का व्रत। कई बच्चे बहुत अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं। कहते हैं-’’क्रोध आया नहीं लेकिन क्रोध दिलाया गया, तो क्या करें? मेरे को नहीं आया लेकिन दूसरा दिलाता है।’’ बहुत म॰जे की बातें करते हैं। कहते हैं-आप भी उस समय होते तो आपको भी आ जाता। तो बापदादा क्या कहेंगे? बापदादा भी कहते-अच्छा, तुमको माफ कर दिया, लेकिन आगे फिर नहीं करना।

शिवरात्रि का अर्थ ही है-अंधकार मिटाए प्रकाश लाने वाली रात्रि। मास्टर ज्ञान-सूर्य प्रकट होना-यह है शिवरात्रि। आप भी मास्टर ज्ञान-सूर्य बन विश्व में अंधकार को मिटाए रोशनी देने वाले हो। जो विश्व को रोशनी देने वाला है वह स्वयं क्या होगा? स्वयं अंध-कार में तो नहीं होगा ना। दीपक के माफिक तो नहीं हो? दीपक के नीचे अंधियारा होता है, ऊपर रोशनी होती है। आप मास्टर ज्ञान-सूर्य हो। तो मास्टर ज्ञान-सूर्य स्वयं भी प्रकाश-स्वरूप है, लाइट-माइट रूप है और दूसरों को भी लाइट-माइट देने वाले हैं। जहाँ सदा रोशनी होती है वहाँ अंधकार का सवाल ही नहीं, अंधकार हो ही नहीं सकता। तो सम्पूर्ण पवित्रता अर्थात् रोशनी। अंधकार मिटाने वाली आत्माओं के पास अंधकार रह नहीं सकता। रह सकता है? आ सकता है? चलो, रहे नहीं लेकिन आकर चला जाए-यह हो सकता है? अगर किसी भी विकार का अंश है तो उसको रोशनी कहेंगे या अंधकार कहेंगे? अंधकार खत्म हो गया ना। शिवरात्रि का चित्र भी दिखाते हो ना। उसमें क्या दिखाते हो? अंधकार भाग रहा है। कि थोड़ा-थोड़ा रह गया? इस शिवरात्रि पर विशेष क्या करेंगे? कुछ करेंगे या सिर्फ झण्डा लहरायेंगे? जैसे सदा प्रतिज्ञा करते हो कि हम यह नहीं करेंगे, यह नहीं करेंगे........ और फिर करेंगे भी-ऐसे तो नहीं? पहले भी सुनाया है कि प्रतिज्ञा का अर्थ ही है कि जान चली जाए लेकिन प्रतिज्ञा न जाये। कुछ भी त्याग करना पड़े, कुछ भी सुनना पड़े लेकिन प्रतिज्ञा न जाये। ऐसे नहीं-जब कोई समस्या नहीं तब तो प्रतिज्ञा ठीक है, अगर कोई समस्या आ गई तो समस्या शक्तिशाली हो जाए और प्रतिज्ञा उसके आगे कमजोर हो जाए। इसको प्रतिज्ञा नहीं कहा जाता। वचन अर्थात् वचन। तो ऐसे प्रतिज्ञा मन से करें, कहने से नहीं। कहने से करने वाले उस समय तो शक्तिशाली संकल्प करते हैं। कहने से करने वाले में शक्ति तो रहती है लेकिन सर्व शक्तियाँ नहीं रहतीं। जब मन से प्रतिज्ञा करते हो और किससे प्रतिज्ञा की? बाप से। तो बाप से मन से प्रतिज्ञा करना अर्थात् मन को ‘मन्मनाभव’ भी बनाना और मन्मनाभव का मन्त्र सदा किसी भी परिस्थिति में यन्त्र बन जाता है। लेकिन मन से करने से यह होगा। मन में आये कि मुझे यह करना नहीं है। अगर मन में यह संकल्प होता है कि-कोशिश करेंगे; करना तो है ही; बनना तो है ही; ऐसे नहीं करेंगे तो क्या होगा; क्या करेंगे, इसलिए कर लो........। इसको कहा जायेगा थोड़ी-थोड़ी मजबूरी। जो मन से करने वाला होगा वह यह नहीं सोचेगा कि करना ही पड़ेगा........। वह यह सोचगा कि बाप ने कहा और हुआ ही पड़ा है। निश्चय और सफलता में निश्चित होगा। यह है फर्स्ट नम्बर की प्रतिज्ञा। सेकेण्ड नम्बर की प्रतिज्ञा है- बनना तो है, करना तो है ही, पता नहीं कब हो जाये। यह ‘तो’, ‘तो’........करना अर्थात् तोता हो गया ना। बापदादा के पास हर एक ने कितनी बार प्रतिज्ञा की है, वह सारा फाइल है। फाइल बहुत बड़े हो गये हैं। अभी फाइल नहीं भरना है, फाइनल करना है। जब कोई बापदादा को कहते हैं कि प्रतिज्ञा की चिटकी लिखायें, तो बापदादा के सामने सारी फाइल आ जाती है। अभी भी ऐसे करेंगे? फाइल में कागज एड करेंगे कि फाइनल प्रतिज्ञा करेंगे?

प्रतिज्ञा कमजोर होने का एक ही कारण बापदादा ने देखा है। वह एक शब्द भिन्न-भिन्न रॉयल रूप में आता है और कमजोर करता है। वह एक ही शब्द है-बाडी-कॉनसेस का ‘मैं’। यह ‘मैं’ शब्द ही धोखा देता है। ‘मैं’ यह समझता हूँ, ‘मैं’ ही यह कर सकता हूँ, ‘मैंने’ जो कहा वही ठीक है, ‘मैंने’ जो सोचा वही ठीक है-तो ‘भिन्न-भिन्न’ रॉयल रूप में यह मैं-पन प्रतिज्ञा को कमजोर करता है। आखिर कमजोर होकर के दिलशिकस्त के शब्द सोचते हैं-मैं इतना सहन नहीं कर सकता; अपने को इतना एकदम निर्माण कर दूँ, इतना नहीं कर सकता; इतनी समस्यायें पार नहीं कर सकते, मुश्किल है। यह ‘मैं-पन’ कमजोर करता है। बहुत अच्छे रॉयल रूप हैं। अपनी लाइफ में देखो-यही ‘मैं-पन’ संस्कार के रूप में, स्वभाव के रूप में, भाव के रूप में, भावना के रूप में, बोल के रूप में, सम्बन्ध-सम्पर्क के रूप में और बहुत मीठे रूप में आता है? शिवरात्रि पर यह ‘मैं’-’मैं’ की बलि चढ़ती है। भक्त बेचारों ने तो बकरी के ‘मैं-मैं........’ करने वाले को बलि चढ़ाया। लेकिन है यह ‘मैं-मैं’, इसकी बलि चढ़ाओ। यादगार तो आप लोगों का और रूप में मना रहे हैं। बलि चढ़ चुके हैं या अभी थोड़ी ‘मैं-पन’ की बलि रही हुई है? क्या रिजल्ट है? प्रतिज्ञा करनी है तो सम्पूर्ण प्रतिज्ञा करो। जब बाप से प्यार है, प्यार में तो सब पास हैं। कोई कहेगा-बाप से 75%  प्यार है, 50%  प्यार है? प्यार के लिए सब कहेंगे-100% से भी ज्यादा प्यार है! बाप भी कहते हैं कि सभी प्यार करने वाले हैं, इसमें पास हैं। प्यार में त्याग क्या चीज है! तो प्रतिज्ञा मन से करो और दृढ़ करो। बार-बार अपने आपको चेक करो कि प्रतिज्ञा पॉवरफुल है या परीक्षा पॉवरफुल है? कोई न कोई परीक्षा प्रतिज्ञा को कमजोर कर देती है।

डबल विदेशी तो वायदा करने में होशियार हैं ना। तोड़ने में नहीं, जोड़ने में होशियार हो। बापदादा सभी डबल विदेशी बच्चों का भाग्य देख हर्षित होते हैं। बाप को पहचान लिया-यही सबसे बड़े ते बड़ी कमाल की है! दूसरी कमाल-वैराइटी वृक्ष की डालियां होते हुए भी एक बाप के चन्दन के वृक्ष की डालियां बन गये! अब एक ही वृक्ष की डालियां हो। भिन्नता में एकता लाई। देश भिन्न है, भाषा भिन्न-भिन्न है, कल्चर भिन्न-भिन्न है लेकिन आप लोगों ने भिन्नता को एकता में लाया। अभी सबका कल्चर कौनसा है? ब्राह्मण कल्चर है। यह कभी नहीं कहना कि हमारा विदेश का कल्चर ऐसे कहता है; या भारतवासी कहें कि हमारे भारत का कल्चर ऐसे होता है। न भारत, न विदेश-ब्राह्मण कल्चर। तो भिन्नता में एकता-यही तो कमाल है! और कमाल क्या की है? बाप के बने तो सब प्रकार की अलग-अलग रस्म-रिवाज, दिनचर्या आदि सब मिलाकर एक कर दी। चाहे अमेरिका में हों, चाहे लण्डन में हों, कहाँ भी हों लेकिन ब्राह्मणों की दिनचर्या एक ही है। या अलग है? विदेश की दिनचर्या अलग हो, भारत की अलग हो-नहीं। सबकी एक है। तो यह भिन्नता का त्याग-यह कमाल है। समझा, क्या-क्या कमाल की है? जैसे आप बाप के लिए गाते हो ना कि-बाप ने कमाल कर दी! बाप फिर गाते हैं-बच्चों ने कमाल कर दी। बापदादा देख-देख हर्षित होते हैं। बाप हर्षित होते हैं और बच्चे खुशी में नाचते हैं।

सेवा भी चारों ओर-विदेश की, देश की सुनते रहते हैं। दोनों ही सेवा में रेस कर रहे हैं। प्रोग्राम्स सभी अच्छे हुए हैं और आगे भी होते रहेंगे। यह दृढ़ संकल्प यूज़ किया अर्थात् सफल किया। जितना दृढ़ संकल्प को सफल करते जायेंगे उतनी सहज सफलता अनुभव करते जायेंगे। कभी भी यह नहीं सोचो कि यह कैसे होगा। ‘कैसे’ के बजाए सोचो कि ‘ऐसे’ होगा। संगम पर विशेष वर-दान ही है-असम्भव को सम्भव करना। तो ‘कैसे’ शब्द आ ही नहीं सकता। यह होना मुश्किल है नहीं। निश्चय रखकर चलो कि यह हुआ पड़ा है, सिर्फ प्रैक्टिकल में लाना है। यह रिपीट होना है। बना हुआ है, बने हुए को बनाना अर्थात् रिपीट करना। इसको कहा जाता है सहज सफलता का आधार दृढ़ संकल्प के खज़ाने को सफल करो। समझा, क्या होगा, कैसे होगा-नहीं। होगा और सहज होगा! संकल्प की हलचल है तो वह सफलता को हलचल में ले आयेगी। अच्छा!

चारों ओर के सदा उत्सव मनाने वाले, सदा उमंग-उत्साह से उड़ने वाले, सदा सम्पूर्ण प्रतिज्ञा के पात्र अधिकारी आत्मायें, सदा अस-म्भव को सहज सम्भव करने वाले, सदा हर प्रकार की परीक्षा को कमजोर कर प्रतिज्ञा को पॉवरफुल बनाने वाले, सदा बाप के प्यार के रिटर्न में कुछ भी त्याग करने की हिम्मत वाले, ऐसे त्रिमूर्ति शिव बाप के जन्म-साथी, ब्राह्मण आत्माओं को अलौकिक जन्मदिन की याद, प्यार और मुबारक। बापदादा की विशेष श्रेष्ठ आत्माओं को नमस्ते।

बापदादा ने दादी तथा दादी जानकी को गले लगाया और बोले-

देखने वालों को भी खुशी है। सभी सदा ब्रह्मा बाप की भुजाओं में समाये हुए हैं। सदा ब्रह्मा बाप की भुजायें सभी बच्चों की सेफटी का साधन हैं। तो कहाँ रहते हो? भुजाओं में रहते हो ना! जो प्यारे होते हैं वो सदा भुजाओं में होते हैं। सेवा में बापदादा की भुजायें हो और रहने में बाप की भुजाओं में रहते हो। दोनों ही दृश्य अनुभव होते हैं ना। कभी भुजाओं में समा जाओ और कभी भुजायें बन-कर सेवा करो! कौनसी भुजा हो? राइट हैण्ड। राइट हैन्ड हो ना! लेफट तो नहीं हो ना। राइट हैण्ड का अर्थ ही है-श्रेष्ठ कार्य करने वाले। लेफट हैण्ड तो आपकी प्रजा की भी प्रजा होगी। लेकिन आप सभी ब्राह्मण राइट हैण्ड हो। यह नशा है कि हम भगवान के राइट हैण्ड है? कोई रिवाजी महात्मा, धर्मात्मा के नहीं, परम आत्मा के राइट हैण्ड हैं! दोनों को देखकर के सब खुश होते हैं। निमित्त आत्माओं को थकाते तो नहीं हो? अच्छी-अच्छी कहानियां सुनाते हैं। अच्छा है। आप लोगों को सर्व अनुभवों की खान भरने के निमित्त हैं ये। अच्छा! कांफ्रेंस वा रिट्रीट-दोनों की रिजल्ट अच्छी रही! अच्छा! विदेश के निमित्त बने हुए आदि रत्न भी अच्छी अंदाज़ में आये हुए हैं। कोई-कोई दूर होते भी समीप हैं। फिर भी अच्छे पहुँच गये हैं। (17 तारीख को 10 वर्षों से ज्ञान में चलने वाले भाई-बहनों का विशेष समारोह गया) अच्छा है, हिम्मत की मुबारक! 10 वर्ष निश्चयबुद्धि बन पार किया है, तो अचल-अडोल रहने की मुबारक। अभी फिर 10 वर्ष वालों को क्या करना है? जैसे 10 वर्ष समस्याओं को पार करते हिम्मत-उमंग से चलते उड़ते रहे हो, ऐसे ही फिर अभी जल्दी स्थापना की डायमन्ड जुबली होनी है, उसमें फिर पार्ट लेना। डायमन्ड जुबली का भी इनएडवांस पक्का है ना। ज्यादा दिन तो नहीं हैं। अच्छा दृश्य था, बाप को अच्छा लगा। रूहानियत का दृश्य अच्छा था!

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

ग्रुप नं. 1

संगम का हर सेकेण्ड अच्छे ते अच्छा है - इस निश्चय से सहजयोगी बनो

सभी प्वाइंट्स का सार क्या है? प्वाइंट बनना। सब प्वाइंट्स का इसेन्स हुआ-प्वाइंट बनना। तो प्वाइट बनना सहज है या मुश्किल है? जो सहज बात होती है वो सदा होती है और मुश्किल होती है तो समटाइम (Sometime-कभी-कभी) होती है। सबसे इजी (सहज) क्या है? प्वाइंट। प्वाइंट को लिखना सहज है ना! जब भी प्वाइंट रूप में स्थित नहीं होते तो क्वेश्चन-मार्क की क्यू होती है ना! क्वेश्चन-मार्क मुश्किल होता है! तो जब भी क्वेश्चन-मार्क आये तो उसके बदले इजी ‘प्वाइंट’ लगा दो। किसी भी बात को समाप्त करना होता है तो कहते हैं-इसको बिन्दी लगा दो। फुलस्टॉप लगाना आता है ना! फुलस्टॉप लगाने का सहज स्लोगन याद रखो-जो हुआ, जो हो रहा है, जो होगा वह अच्छा होगा! क्योंकि क्वेश्चन तब उठता है जब अच्छा नहीं लगता है। इसलिए संगमयुग है ही अच्छे ते अच्छा, हर सेकेण्ड अच्छे ते अच्छा। इससे सदा सहज योगी जीवन का अनुभव करेंगे! ‘अच्छा’ कहने से अच्छा हो ही जाता है। स्वयं भी अच्छे और जो एक्ट करेंगे वह भी अच्छी! अच्छे को देखकर के दूसरे आकर्षित अवश्य होंगे। सभी अच्छा ही पसन्द करते हैं। अच्छा! सेवा अच्छी चल रही है ना! संख्या भी बढ़ाओ और क्वालिटी भी बढ़ाते चलो। ऐसे माइक तैयार करो जो एक के नाम से अनेकों का कल्याण हो जाए। स्वयं सदा सन्तुष्ट हो? अपने लिए तो कोई क्वेश्चन नहीं है ना! ‘निश्चय’ है फाउ-न्डेशन, निश्चय का फाउन्डेशन होगा तो कर्म आटोमेटिकली श्रेष्ठ होंगे। पहले स्मृति निश्चय की होती है। संकल्प में निश्चय अर्थात् दृढ़ता होगी तो कर्म आटोमेटिकली फल देंगे। अच्छा! सभी खुश और सन्तुष्ट हैं! सदा खुशी में नाचने वाले हैं! हलचल का समय समाप्त हो गया। पास्ट को पास्ट किया और फयुचर तो है ही बहुत सुन्दर! गोल्डन फयुचर है!

ग्रुप नं. 2

सर्व खज़ानों को सफल करना ही समर्थ आत्मा की निशानी है

सदा अपने को बाप के समर्थ बच्चे अनुभव करते हो? समर्थ आत्माओं की निशानी क्या है? समर्थ आत्मायें कोई भी खज़ाने को व्यर्थ नहीं करेंगी। समर्थ अर्थात् व्यर्थ की समाप्ति। संगमयुग पर बाप ने कितने खज़ाने दिये हैं? सबसे बड़ा खज़ाना है श्रेष्ठ संकल्पों का खज़ाना। संगम का समय-यह भी बड़े ते बड़ा खज़ाना है। सर्व शक्तियाँ-यह भी खज़ाना है; सर्व गुण-यह भी खज़ाना है। तो सभी खज़ानों को सफल करना-यह है समर्थ आत्मा की निशानी। सदा हर खज़ाने सफल होते हैं या व्यर्थ भी हो जाते हैं? कभी व्यर्थ भी होता है? जितना समर्थ बनते हैं तो व्यर्थ स्वत: ही खत्म हो जाता है। जैसे-रोशनी का आना और अंधकार का जाना। क्योंकि जानते हो कि-हर खज़ाने की वैल्यु कितनी बड़ी है, संगमयुग के पुरूषार्थ के आधार पर सारे कल्प की प्रालब्ध है! तो एक सेकेण्ड, एक श्वॉस, एक गुण की कितनी वैल्यु है! अगर एक भी संकल्प वा सेकेण्ड व्यर्थ जाता है तो सारा कल्प उसका नुकसान होता है। तो इतना याद रहता है? एक सेकेण्ड कितना बड़ा हुआ! तो कभी भी ऐसे नहीं समझना कि सिर्फ एक सेकेण्ड ही तो व्यर्थ हुआ! लेकिन एक सेकेण्ड अनेक जन्मों की कमाई या नुकसान का आधार है। गाया हुआ है ना-कदम में पद्मों की कमाई है। एक कदम उठाने में कितना टाइम लगता है? सेकेण्ड ही लगता है ना। सेकेण्ड गँवाना अर्थात् पद्मापद्म गँवाना। इस वैल्यु को सदा सामने रखते हुए सफल करते जाओ। चाहे स्वयं के प्रति, चाहे औरों के प्रति-सफल करते जाओ तो सफल करने से सफलतामूर्त अनु-भव करेंगे। सफलता समर्थ आत्मा के लिए जन्मसिद्ध अधिकार है। बर्थ-राइट (Birth Right) मिला है ना! कोई भी कर्म करते हो-ज्ञान-स्वरूप होकर के कर्म करने से सफलता अवश्य प्राप्त होती है। तो सफलता का आधार है-व्यर्थ न गँवाकर सफल करना। ऐसे नहीं-व्यर्थ नहीं गँवाया। लेकिन सफल भी किया? जितना कार्य में लगायेंगे उतना बढ़ता जायेगा।

खज़ानों को बढ़ाना आता है? सफल करना अर्थात् लगाना। तो सदा कार्य में लगाते हो या जब चांस मिलता है तब लगाते हो? हर समय चेक करो-चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क से सफल जरूर करना है। सारे दिन में कितनों की सेवा करते हो? अगर सेवाधारी सेवा नहीं करे तो अच्छा नहीं लगेगा ना। तो विश्व-सेवाधारी हो! हर दिन सेवा करनी ही है! सदा याद रखो कि जो भी अखुट खज़ाने मिले हैं वो देने ही है। दाता के बच्चे हो, तो रोज़ देना जरूर है। जो महादानी होते हैं वो एक दिन भी देने के बिना नहीं रह सकते। अगर वाचा का चांस नहीं मिलता तो मन्सा करो, मन्सा का नहीं मिलता तो अपने कर्म वा प्रैक्टिकल लाइफ द्वारा सेवा करो। कई कहते हैं कि आज कोई स्टूडेन्ट मिला ही नहीं, कोई सुनने वाला नहीं मिला। लेकिन मन्सा-सेवा तो बेहद की सेवा है। मन्सा-सेवा करनी आती है? जितना आप मन्सा से, वाणी से स्वयं सैम्पल (Sample) बनेंगे, तो सैम्पल को देखकर के स्वत: ही आकर्षित होंगे। तो आप सभी फर्स्ट-क्लास सैम्पल हो ना। फर्स्ट-क्लास सैम्पल फर्स्ट-क्लास को लायेगा ना! सिर्फ दृढ़ संकल्प रखो तो सहज हो जायेगा। अगर कोई भी व्यर्थ संकल्प अपने अन्दर ही होगा कि पता नहीं सफलता मिलेगी वा नहीं मिलेगी-तो यह संकल्प सफलता को भी पीछे कर देता है! इसलिए जब समय परिवर्तन का है तो परिवर्तन होना ही है, हुआ ही पड़ा है! हिम्मत का कदम उठाओ तो मदद है ही है। हिम्मत वाले हो ना। खुशी से बोलो-हाँ जी! पाण्डव थोड़े गम्भीर हैं? सोच रहे हैं! समर्थ आत्मा हूँ-यह बार-बार याद रखना। तो कमाल करके दिखायेंगे। अच्छा! अभी जितने आये हो उससे 10गुणा बढ़ाकर आना। मुश्किल है? तो क्यों नहीं कहते हो कि 10गुणा नहीं, 100गुणा बढ़ाकर के आयेंगे। कितनी दुआयें मिलेंगी! सेवा की दुआयें बहुत सहज उड़ाने वाली हैं। उड़ने वाले हो ना। दूसरे वर्ष रिजल्ट देखेंगे। अच्छा!

ग्रुप नं. 3

वरदानी वर्ष में दृढ़ता से सफलता का सहज अनुभव करो

वरदान और मेहनत में क्या अन्तर है? एक होता है बहुत मेहनत के बाद फल मिलना और दूसरा होता है निमित्त मेहनत और वर-दान से सफलता। इस वर्ष जो यह दृढ़ संकल्प करेंगे कि ‘‘व्यर्थ संकल्प स्वप्न-मात्र भी नहीं आये’’-ऐसा दृढ़ संकल्प करेंगे तो सफलता सहज अनुभव करेंगे। लाभ लेना चाहिए ना। देखेंगे-कौन इस वरदानी वर्ष का फायदा लेता है? चाहे स्वयं प्रति भी जिस बात को मुश्किल समझते हो वो सहज अनुभव कर सकते हो, सिर्फ क्वेश्चन मार्क को खत्म करो। क्वेश्चन-मार्क सफलता प्राप्त करने में दीवार बन जाता है। इसलिये इस दीवार को खत्म करो। समझा? यह दृढ़ता सफलता की चाबी बन जायेगी। तो चाबी को यूज़ करो। चाबी यूज़ करनी आती है? चाबी है या खो जाती है? क्योंकि माया को भी यह चाबी अच्छी लगती है। देखो, कोई भी कहाँ वार करता है तो पहले आप से चाबी मांगेगा। तो माया भी पहले चाबी उड़ा लेती है। आप सोचेंगे-मेरा संकल्प तो बहुत अच्छा था लेकिन क्यों नहीं हुआ? क्योंकि बीच से दृढ़ता की चाबी खो जाती है। चाबी सम्भालने में मातायें ज्यादा होशियार होती हैं। पाण्डवों को चाबी सम्भालनी आती है? या कभी मिस कर देते हो?

सभी का लक्ष्य सेवा के प्रति वा स्वयं के प्रति बहुत अच्छा है, सिर्फ लक्ष्य को प्रैक्टिकल में लाने के लिये बीच-बीच में अटेन्शन रखना पड़ता है। कभी-कभी एक बात मिस कर देते हो-’अटेंशन’ की ‘की’ (Key; चाबी) को उड़ा देते हो। तो क्या हो जाता है? (टेन्शन) तो जहाँ टेन्शन होता है ना, वहाँ मुश्किल हो जाता है। अटेन्शन का भी टेन्शन कर देते हो। बापदादा कहते हैं ना- अटेन्शन रखो, अटेन्शन रखो। तो अटेन्शन को भी टेन्शन में बदली कर देते हैं। सदा यही स्मृति में रखो कि बापदादा की सदा मदद अर्थात् सहयोग का हाथ मेरे सिर पर है। यह चित्र सदा इमर्ज रूप में रखो। तो जिसके सिर पर बाप का हाथ है उसके मस्तक पर सदा विजय का तिलक है ही है। तो अपने मस्तक पर सदा विजय का तिलक नजर आता है? या कभी मिट जाता है? जैसे बाप अविनाशी है, आप आत्मायें भी अविनाशी हैं-तो यह विजय का तिलक भी अविनाशी लगा हुआ है।

अच्छा है, सेवा का उमंग-उत्साह जितना रखते जाते हो उतना सहज निर्विघ्न बनते हो। क्योंकि सेवा में बुद्धि बिजी रहती है। खाली रहने से किसी और को आने का चान्स है और बिजी रहने से सहज निर्विघ्न बन जाते हैं। तो बिजी रहते हो? कि थोड़ा बिजी रहते हो, थोड़ा खाली रहते हो? बुद्धि भी बिजी रहे, सिर्फ हाथ-पाँव नहीं। मन और बुद्धि का टाइम-टेबल बनाना आता है? रोज बनाते हो या जब फुर्सत मिलती है तब बनाते हो? जैसे कर्म का टाइम-टेबल रोज़ बनाते हो ना, ऐसे मन-बुद्धि का टाइम-टेबल बनाओ। क्योंकि आप सबसे बड़े ते बड़े, ऊंचे ते ऊंचे हो। बाप तो बच्चों को आगे रखता है ना। तो जितने वी.आई.पी. (V.I.P.) होते हैं, वे क्या करते हैं? टाइम-टेबल पर चलते हैं। तो आप से ऊंचा सारे चक्र में कोई है? तो टाइम-टेबल पर चलना पड़े ना। अच्छा!

यू.के. में सेवा-स्थान और सेवा अच्छी चल रही है। स्थान लेने में तो मेकअप (Make Up; कमी पूरी करना) कर रहे हो, लेकिन स्थिति में भी मेकअप कर रहे हो? अच्छी रिजल्ट है, क्यों? क्योंकि आप सभी के बड़ी दिल का सहयोग है। यह सहयोग ही सेवा बड़ी कर रहा है। चाहे निमित्त कोई भी बनता है लेकिन देखा गया कि यू.के. वालों की हर कार्य में दिल बड़ी है, उसका प्रत्यक्ष फल मिल रहा है। अभी यू.के. को फॉलो करो। फ्रीन्स, केनाडा, सब फॉलो करो। अभी जिन्हें सहयोगी बनाया है उन्हों को वारिस बनाओ। एक तरफ वारिस बनाओ, दूसरी तरफ माइक बनाओ। लन्दन वालों ने इतना बड़ा माइक नहीं निकाला है जो इन्डिया तक आवाज आये। लन्दन का लन्दन में ही आवाज है। आप तो विश्व-कल्याणकारी हो ना। जब बड़ी दिल रखने वाले हो तो सेवा का प्रत्यक्षफल भी बड़ा निकलना ही है। कोई भी कार्य करो तो स्वयं करने में भी बड़ी दिल और दूसरों को सहयोगी बनाने में भी बड़ी दिल। कभी भी स्वयं प्रति वा सहयोगी आत्माओं के प्रति, साथियों के प्रति संकुचित दिल नहीं रखो। यह विधि बहुत अच्छी है। बड़ी दिल रखने से-जैसे गाया हुआ है कि मिट्टी भी सोना हो जाती है-कमजोर साथी भी शक्तिशाली साथी बन जाता है, असम्भव सफलता सम्भव हो जाती है। बड़ी दिल वाले हो ना। ‘मैं’-’मैं’ करने वाले तो नहीं हो ना। यह ‘मैं’-’मैं’ जो करता है उसे कहेंगे बकरी दिल और बड़ी दिल वाले को कहेंगे शेर दिल। शक्तियों की सवारी किसके ऊपर है? बकरी के ऊपर या शेर के ऊपर? शेर पर है ना। आप भी शक्ति सेना हो। तो शेर पर सवारी है ना। ‘मै’-’मैं’ को बलि चढ़ा लिया ना, समाप्त कर दिया। तो सदा यह स्मृति में रखो कि हर सेकेण्ड, हर संकल्प को सफल करते हुए सफलता का अधिकार हर समय प्राप्त करते रहेंगे। अच्छा!

ग्रुप नं. नं. 4

बिन्दु रूप या डबल लाइट रहना ही उड़ती कला का सहज साधन है

सदा अपने को कौनसे सितारे समझते हो? (सफलता के सितारे, लक्की सितारे, चमकते हुए सितारे, उम्मीदों के सितारे) बाप की आंखों के तारे। तो नयनों में कौन समा सकता है? जो बिन्दु है। आंखों में देखने की विशेषता है ही बिन्दु में। जितना यह स्मृति रखेंगे कि हम बाप के नयनों के सितारे हैं, तो स्वत: ही बिन्दु रूप होंगे। कोई बड़ी चीज़ आंखों में नहीं समायेगी। स्वयं आंख ही सूक्ष्म है, तो सूक्ष्म आंख में समाने का स्वरूप ही सूक्ष्म है। बिन्दु-रूप में रहते हो? यह बड़ा लम्बा-चौड़ा शरीर याद आ जाता है? बापदादा ने पहले भी सुनाया था कि हर कर्म में सफलता वा प्रत्यक्षफल प्राप्त करने का साधन है-रोज़ अमृतवेले तीन बिन्दु का तिलक लगाओ। तो तीन बिन्दु याद हैं ना। लगाना भी याद रहता है? क्योंकि अगर तीनों ही बिन्दी का तिलक सदा लगा हुआ है तो सदैव उड़ती कला का अनुभव होता रहेगा। कौनसी कला में चल रहे हो? उड़ती कला है? या कभी उड़ती, कभी चलती, कभी चढ़ती? सदा उड़ती कला। उड़ने में मजा है ना। या चढ़ने में मजा है? चारों ओर के वायुमण्डल में देखो कि समय उड़ता रहता है। समय चलता नहीं है, उड़ रहा है। और आप कभी चढ़ती कला, कभी चलती कला में होंगे तो क्या रिजल्ट होगी? समय पर पहुँ-चेंगे? तो पहुँचने वाले हो या पहुँचने वालों को देखने वाले हो? सभी पहुँचने वाले हो, देखने वाले नहीं। तो सदा उड़ती कला चाहिए ना।

उड़ती कला का क्या साधन है? बिन्दु रूप में रहना। डबल लाइट। बिन्दु तो है लेकिन कर्म में भी लाइट। डबल लाइट हो तो जरूर उड़ेंगे। आधा कल्प बोझ उठाने की आदत होने कारण बाप को बोझ देते हुए भी कभी-कभी उठा लेते हैं। तंग भी होते हो लेकिन आदत से मजबूर हो जाते हो। कहते हो ‘तेरा’ लेकिन बना देते हो ‘मेरा’। स्व उन्नति के लिए वा विश्व-सेवा के लिए कितना भी कार्य हो वह बोझ नहीं लगेगा। लेकिन मेरा मानना अर्थात् बोझ होना। तो सदैव क्या याद रखेंगे? मेरा नहीं, तेरा। मन से, मुख से नहीं। मुख से तेरा-तेरा भी कहते रहते हैं और मन से मेरा भी मानते रहते हैं। ऐसी गलती नहीं वर्ना।

बिन्दु-स्वरूप में स्थित होना अर्थात् डबल लाइट बनना। बड़ी चीज को उठाना मुश्किल होता है, छोटी चीज को उठाना सहज होता है। छोटे बिन्दु रूप को स्मृति में रखते हो या लम्बे शरीर को याद रखते हो? याद के लिए कहा जाता है-बुद्धि में याद रखना। मोटी चीज को याद रखते हो और छोटी चीज को छोड़ देते हो, इसलिए मुश्किल हो जाता है। लाइफ में भी देखो-छोटा बनना अच्छा है या बड़ा बनना अच्छा है? छोटा बनना अच्छा है। तो छोटा स्वरूप याद रखना अच्छा है ना। क्या याद रखेंगे? बिन्दु। सहज काम दिया है या मुश्किल? तो फिर ‘कभी-कभी’ क्यों करते? सहज काम तो ‘सदा’ हो सकता है ना। जब बाप भी बिन्दु, आप भी बिन्दु, काम भी बिन्दु से है-तो बिन्दु को याद करना चाहिए। तो अभी डॉट (बिन्दु) को नहीं भूलना। बोझ नहीं उठाना। अच्छा! यह वैरायटी गुलदस्ता है। अच्छा! सभी एक-दो के साथी हैं। विन करना सहज है। क्यों सहज है? (बाबा साथ है) और अनेक बार विजयी बने हैं तो रिपीट करने में क्या मुश्किल है! कोई नई बात करनी होती है तो मुश्किल लगता है और किया हुआ काम फिर से करो तो मुश्किल लगता है क्या? तो कितनी बारी विजयी बने हो? कितना सहज है! किये हुए कार्य में कभी क्वेश्चन नहीं उठेगा-कैसे होगा, क्या होगा, ठीक होगा, नहीं होगा। किया हुआ है तो इजी हो गया ना। कितना इजी? बहुत इजी है! अभी इजी लग रहा है वहां जा के मुश्किल हो जायेगा? सदा इजी। जब मुश्किल लगे तो याद करो-’’कितने बारी किया है तो मुश्किल के बजाये इजी हो जायेगा।’’ सभी बहादूर हैं। क्या याद रखेंगे? बिन्दु। बनना भी बिन्दु है, लगाना भी बिन्दु है। फुल स्टॉप लगाना अर्थात् बिन्दु लगाना। तो इसको भूलना नहीं। अच्छा!

ग्रुप नं. 5

सेल्फ पर राज्य करने वाले बेफिक्र बादशाह बनो

सदा अपने को राजा समझते हो? सेल्फ पर राज्य है अर्थात् स्वराज्य अधिकारी हो। और दूसरे कौनसे राजा हो? बेफिक्र बादशाह। बेफिक्र बादशाह इस समय बनते हो। क्योंकि सतयुग में फिक्र वा बेफिक्र का ज्ञान ही नहीं है। कल क्या थे और आज क्या बने हो! बेफिक्र बादशाह बन गये ना! बेफिक्र बनने से भण्डारे भरपूर हो गये हैं। ब्राह्मण जीवन अर्थात् बेफिक्र बादशाह। स्वराज्य मिला-सब-कुछ मिला। स्वराज्य मिला है? कभी कोई कर्मेन्द्रियां तो धोखा नहीं देती? कभी-कभी थोड़ा खेल करती हैं तो कन्ट्रो-लिंग पॉवर या रूलिंग पॉवर कम है। तो सदैव चलते-फिरते यह स्मृति सदा रहे कि-मैं स्वराज्य अधिकारी बेफिक्र बादशाह हूँ। बाप आया ही है आप सबके फिक्र लेने के लिए। तो फिक्र दे दिया ना। थोड़ा छिपाके तो नहीं रखा है? पॉकेट चेक करके देखो। बुद्धि रूपी, मन रूपी पॉकेट दोनों ही देखो। जब हैं ही बाप के बच्चे, तो बच्चे बेफिक्र होते हैं। क्योंकि बाप दाता है, तो दाता के बच्चों को क्या फिक्र है! अच्छा, यह कौनसी भाषा वाले हैं? (स्पेनिश, पोर्तुगीज) देखो, साइन्स के साधन आपके काम में तो आ रहे हैं ना! ड्रामा अनुसार साइन्स वालों को भी टच तभी हुआ है जब बाप को आवश्यकता है। साधन यूज़ करना अलग चीज़ है और साधनों के वश होना अलग चीज़ है। तो आप साधनों को यूज़ करते हो या साधनों के वश हो जाते हो? कभी कोई साधन अपनी तरफ खींचते तो नहीं हैं? मास्टर क्रियेटर होकर के क्रियेशन से लाभ भले लो। अगर वशीभूत हो गये तो दु:ख देंगे। अच्छा!

अमृतवेले 3.00 बजे स्वयं अव्यक्त बापदादा ने शिव-ध्वज फहराया और उसी स्थान पर खड़े रहकर ब्रह्मा वत्सों को सम्बोधित करते हुए बोले-

आज के इस-शिवरात्रि कहो वा शिवजयन्ती कहो-शिवरात्रि वा शिवजयन्ती के उत्सव की सभी को पद्मापद्म गुणा मुबारक हो! सदा हर सेकेण्ड उमंग-उत्साह बढ़ाते-बढ़ाते इस विश्व को ही उत्साह भरा अपना राज्य बना लेंगे। आज औरों के राज्य में सेवाधारी बन सेवा कर रहे हो और कल अपने स्वराज्य के साथ विश्व के राज्य के राज्य अधिकारी बने कि बने! तो सदा हर सेकेण्ड उत्साह भरना और दुआयें लेना। हर सेकेण्ड दुआयें लेते जाओ और दुआयें देते जाओ। आपकी दुआओं से सदा सर्व आत्मायें सुखी हो जायेंगी। वो दिन आया कि आया-जब सभी आत्मायें बाप के झण्डे के नीचे, छत्रछाया के नीचे खड़ी होंगी! तो मुबारक हो! चारों ओर के बच्चों को, दिल में रहने वाले बच्चों को मुबारक हो! मुबारक हो!!